दूसरा ट्रैक


धनाढ्य घर में जन्म लिया. लाड़ प्यार में पली एक खूबसूरत लड़की के कितने अरमान मचल रहे होंगे. यही कोई 14-15 की उम्र रही होगी. दादाजी का बहुत बड़ा कारोबार था. घर में उनकी तूती बोलती थी. पिता बेरोजगार लेकिन फिर भी ठाठ ऐसे कि बड़े-बड़े रईस शर्मा जाएँ. इसी तरह ज़िन्दगी चल रही थी. बच्चों को कोई ज़रूरत हो तो दादा-दादी तुरंत पूरी कर देते थे. मम्मी-पापा से कभी कुछ कहने की ज़रूरत नहीं पड़ी. अचानक वक्त ने करवट बदली. दादा जी की तबियत कुछ बिगड़ गयी, कारोबार लडखडाया. बेटा नालायक संभालेगा क्या, डूबने में सहायक हुआ.

कुछ वर्ष इसी तरह बीते. छह बच्चे, मियाँ बीवी. छोटे भाइयों ने अपनी गृहस्थी अलग कर ली थी और सोचने पर मजबूर कर दिया. बच्चों की माँ किसी तरह इधर-उधर के घरों में काम करके खाने-पीने का जुगाड़ करती. इसके अलावा वह कर भी क्या सकती थी. भाइयों को ये समझ में नहीं आ रहा था बच्चों का पालन पोषण कैसे होगा. उसमें भी पांच-पांच बेटियाँ. जो होगा सो होगा, हमें क्या? खैर, किसी तरह बड़ी बेटी की शादी लोगों ने मिलकर करवा दी. अब दूसरी की बारी थी. वो दसवीं में पढ़ रही थी. एक दिन वह स्कूल से घर आई तो घर का माहौल बदला हुआ सा लग रहा था. काफी अच्छे-अच्छे व्यंजन बन रहे थे. ऐसे भोजन देखना तो क्या वो तो उनकी गंध भी भूल चुकी थी. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है. वह कुछ सोचती तभी माँ ने आवाज़ दी, “मनु, थोड़े ढंग के कपडे पहन ले. मेहमान आ रहे हैं, उनको चाय-पानी देना है. फिर रात के खाने की तैयारी करनी है. 
मनु ने पुछा- “कौन हैं?” 
माँ ने दबी आवाज़ में कहा- “चुप, चुप. धीरे बोल, रिश्ते के लिए आयें हैं.” मनु को कुछ भी समझ में नहीं आया. 
वह पानी और चाय ट्रे में लेकर गयी. टेबल पर रखा. उसने देखा कि चाचाजी भी वहीं बैठे थे. एक अधेड़ उम्र के सज्जन जो उसके पापा से भी बड़े लग रहे थे, बड़े ही अजीब ढंग से घूर रहे थे. मनु वहां से गुस्से मैं पैर पटकती हुई वापस आई और अपनी माँ से पूछा- “तुम क्यों नहीं गयी चाय देने? मुझे ऐसे लोगों के सामने नहीं भेजना. अब दुबारा मैं नहीं जाउंगी.” 
माँ ने कहा- “देख बेटी, वो तो तेरे ही रिश्ते के लिए आये हैं तो तुम्हें ठीक से देखेंगे तो. हमारी गरीबी किसी से छुपी नहीं है. काफी पैसे वाले हैं तू रानी बन कर रहेगी उस घर में.” 
मनु को अब माजरा समझ में आ गया. उसने कोई जवाब नहीं दिया और अपने कमरे में जाकर लेट गयी. सिसकियों से उसका तकिया भींगता रहा. माँ ने समझ लिया बेटी दुखी है, इसीलिए दुबारा उसे कुछ नहीं कहा. 
सुबह हुई लेकिन वह सवेरा मनु के लिए कुछ और ही था. उससे एक कदम नहीं चला जा रहा था. वह रात भर सोई नहीं थी, आखिर किससे कहे अपने मन की बात. माँ ने अपना सुना दिया, उसे क्या कहें. मनु ने किसी से कुछ नहीं कहा और स्कूल चल पड़ी. उसका उखड़ा-उखड़ा चेहरा देखकर कई लड़कियों ने चुटकी ली लेकिन उसने किसीका जवाब नहीं दिया. उसकी प्रिय सहेली रूपा ने भांप लिया कुछ गड़बड़ है. उसने मनु को झिंझोड़ते हुए पुछा- “क्या बात है?” 
मनु ने कहा, “अभी नहीं कहीं और बताउंगी.” 
और छुट्टी के वक्त वे दोनों एक साथ दुसरे रास्ते से निकल पड़ीं. रास्ते में ही मनु ने सारी बात बयां की और अंत में कहा, “रूपा, मेरी ज़िन्दगी की गाडी गलत ट्रैक पर जा रही है, बस कुछ ही पल का साथ है तेरा मेरा उसके बाद न जाने मेरा क्या होगा. मेरी ज़िन्दगी रहेगी भी या ख़त्म हो जाएगी. तुम याद रखना, अब विदा लेती हूँ.” 
और दोनों सहेलियां जुदा हो अपने-अपने घर के रास्ते चल दीं. अब बेचैनी रूपा की बढ़ चली थी. “हाय रे मेरी मनु. मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी. तेरी ज़िन्दगी की गाडी को उस ट्रैक से हटाकर दुसरे ट्रैक पर डाल दूंगी चाहे मुझे जो भी करना पड़े.” उसने बहुत सोचा पर हल नहीं निकल रहा था. वह अपने बिछावन पर पड़ी सोच में मग्न थी. 
“दीदी,” शब्द से उसकी तन्द्रा टूटी. उसका छोटा भाई कब से वहाँ खड़ा था. उसने सवाल किया, “दीदी, आज तुम्हें क्या हो गया है? तुमने मुझसे एक बार भी बात नहीं की. माँ के सामने मैंने नहीं टोका, वो बेवजह परेशान होंगी. मुझे तो बताओ, आखिर ऐसी कौनसी बात है जो तुम मुझे नहीं बता रही हो, और खुद इतनी परेशान हो रही हो?” 
रूपा ने अपने भाई को पकड़कर बैठाया और कहा- “मेरे भैया, बात ही कुछ ऐसी है. मनु की शादी एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से तय कर दी गयी है. खुद उसकी माँ ने उसे बताया है. क्या ऐसा होने चाहिए? हमलोग उसे रोक नहीं सकते?” 
छोटे भाई का जवाब था- “अगर इंसान सच्चे दिल से किसीकी मदद करने की ठान ले तो उपरवाला भी उसकी मदद ज़रूर करता है. मैं अवश्य कुछ करूँगा. कल ही मैं इस काम में लग जाता हूँ. तुम देखते रहो क्या और कैसे होता है.” 
दूसरा दिन 
मनु की माँ ने साफ़-साफ़ कह दिया, “तुम अब स्कूल नहीं जाओगी.” उन्हें डर था कि बात चारों तरफ फ़ैल जायेगी. उन्हें क्या मालूम था कि बात तो दूसरी जगह चली गयी है. शायद उपरवाले की मर्ज़ी थी. इधर रूपा के भाई ने मनु के घर के आस पास एक दो चक्कर लगाये. उड़ती-उड़ती बात पता चली. गरीब की बेटी है, ब्याह हो जाएगा तो अच्छा ही होगा. क्या हुआ जो बेटा-बेटी वाला आदमी है? पैसे वाला तो है. 
एक बुज़ुर्ग ने कहा- “सुना है दो साल बाद रिटायर करने वाला है, सारे पैसे तो इसी के होंगे.” एक थोड़ा कम दुष्ट था, “इतना आसान भी नहीं. पैसे में उस घर के बच्चे बंटवारा नहीं करेंगे क्या?” 
रूपा के भाई का खून खौल उठा और उसने घर जाकर दीदी को सारी बातें बता दी. दुसरे दिन रूपा खुद मनु से मिलने उसके घर जा पहुंची. सबसे पहले वह मनु की माँ से मिली- “चाची, चाची, मनु की तबियत ख़राब है क्या?” 
जवाब मिला, “हाँ. देखो न वह ठीक से किसी से बात नहीं कर रही और खाना भी नहीं खा रही. चलो तुम आई तो अच्छे से खा लेगी.” बस क्या था, रूपा ने थाली उठायी और मनु के कमरे की ओर चल दी. उसे देखते ही मनु के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी, लेकिन ज्यादा देर रुक न सकी. उसकी माँ भी साए की तरह इधर-उधर मंडराती रही. कोई बात न हो सकी. 
रूपा वापस घर लौट चली. वहां उसका भाई एक ताज़ा खबर लिए बैठा था- “दीदी एक पते की बात मिली है. मैंने बहुत सारी जानकारी इकट्ठा कर ली है. जानकारी इस प्रकार है- वह एक कार्यालय में मुलाज़िम है. दो साल बाद सेवानिवृत होने वाला है. चार बच्चे हैं, बड़ा बेटा शादी के योग्य है. बड़ी बेटी भी करीब-करीब उसी लगभग होगी. अपना मकान है जिसका विभाजन किया जा रहा है. मतलब शादी के बाद अलग-अलग गृहस्थी की योजना है. बेटा-बेटी समझ गए थे ब्रेन-वाश किया गया है. वो सोच रहा है कि गरीब घर की लड़की से शादी कर लूँगा तो वह घर संभालेगी और फिर मैं तुम लोगों की ज़िन्दगी के बारे में अच्छी तरह सोच पाऊँगा. रिटायरमेंट का सारा पैसा तुमलोगों के लिए रख दूंगा. मैं पेंशन से अपना गुज़ारा करूँगा. ये सारी बातें वहां के लोगों से पता चली. यहाँ लड़की के घर वालों से कहा- बेटा-बेटी की शादी कर दूंगा. बेटी अपने घर चली जायेगी, बेटे की गृहस्थी अलग कर दूंगा. दो छोटे बच्चे और मैं, बस इन्हीं के साथ रहना होगा. मैं दो लाख रूपए शादी में दूंगा. पेशगी में पचास हज़ार रूपए दिए जा चुके थे इसीलिए मनु के माँ बाप फुले नहीं समा रहे थे. जहां खाने के लाले पड़े थे वहां पचास हज़ार रूपए काफी मायने रखते हैं. बाकी बेटी की ज़िन्दगी होम हो जाए, क्या फर्क पड़ता है. हाय रे गरीबी.” 
“धिक्कार है. ऐसी माँ के सोच को. तुम अगर मजदूर हो तो मजदूर दामाद ही करो. क्या फर्क पड़ता है. बेटी को रानी बनाने के सपने देखने से पहले उसकी मर्ज़ी भी तो पूछ लेते.” बात बहुत आगे तक बढ़ चुकी थी. अब शायद कुछ भी नहीं हो सकता था. रूपा को लग रहा था अब ये शादी हो ही जायेगी. एक आखिरी उम्मीद- उसने सोचा ये सारी जानकारी किसी तरह मनु को बता दूँ. शायद वह कुछ कर पाए. 
वह डरते-डरते मनु के घर गयी. उसने कहा- “चाचीजी, मनु की शादी होने वाली है. आपके मोहल्ले में किसी से सुना. मुझसे रहा नहीं गया. क्या मैं अपनी सहेली से एक बार नहीं मिल सकती? पता नहीं अब कब मिल पाऊँगी.” 
माँ का दिल पसीजा, कहा- “जाओ दो मिनट के लिए मिल आओ.” रूपा ने मनु को देखा, कुछ कहने-सुनने का समय नहीं था. बहुत सारी औरतें घेरकर बैठी हुईं थीं. उसने मनु का हाथ पकड़ा और कहा- “अब पता नहीं कब भेंट हो, मुझे याद रखना,” और फिर गले मिलने का नाटक करती हुई एक कागज़ किसी तरह उसके कपड़े में फंसा दिया और आँखों ही आँखों में कुछ कहती हुई वापस घर लौट आई. मनु ने एकांत पाकर उस कागज़ को पढ़ा तो उसके पाँव के नीचे से ज़मीन खिसक गयी. उसमें कुछ ही बातें बतायी गयीं थीं. उस कागज़ के अंत में रूपा ने अपनी बात कही थी- “मनु, तुम चाहो तो अभी अपनी ज़िन्दगी की गाडी को दुसरे ट्रैक पर ले जा सकती हो. तुम्हें सहज दिखना होगा. कोई तुम्हारे साथ हो या न हो लेकिन तेरी ये सहेली हर पल तुम्हारे साथ है. चाची ने शादी में आने के लिए कहा था. मैं वहाँ रहूंगी, दूर-दूर ही सही पर रहूँगी तो.” 
बारात आ गयी, गाजे-बाजे के साथ. दूल्हा उम्रदराज, सीधा खड़ा भी नहीं हो पा रहा था. रूपा दूर से ही हर चीज़ का मुआयना कर रही थी. लड़की तैयार होकर आई. मौका देखकर रूपा भी पहुँच गयी. और कान में कहा- “मैंने होने वाले दुल्हे को देख लिया है. वह सीधा खड़ा तक नहीं हो सकता. जल्दी कर, जल्दी से निर्णय ले.” 
बस क्या था. मनु बहाना बना कर अपने कमरे में गयी. उसने अपने सारे दुल्हन के लिबास त्याग दिए और पुराने वस्त्र धारण कर बाहर आई. केश सज्जा उजाड़ कर पूरी अर्धविक्षिप्त का नाटक शुरू कर दिया, “मुझे शादी नहीं करनी. तुमलोग जो चाहे कर लो. मुझे इस आदमी से शादी नहीं करनी. मुझे जो सजा दो मुझे मंजूर है. लेकिन इस आदमी के साथ किसी स्थिति में शादी नहीं करुँगी. 
अनुभवी लोगों ने मान लिया कुछ गड़बड़ है अब ये शादी शायद ही हो पाए. रूपा ने स्थिति की नज़ाकत को भांपते हुए तेज़ क़दमों से अपने घर का रुख कर लिया. धीरे-धीरे कानाफूसी बाहर दरवाजे तक भी पहुँच गयी, “लड़की ने शादी से मन कर दिया, नाबालिग है. कहीं पुलिस न आ जाये.” कुछ बारातियों ने खुसर-फुसर की और वे चलते बने. इधर रूपा हाँफते-हाँफते घर पहुंची. उसका भाई माजरा समझ अपने दो-चार साथियों को ले घटनास्थल पर पहुंचा. विकट स्थिति थे. सारे लोग जा चुके थे. इक्का-दुक्का रह गए थे. 
किसी बुज़ुर्ग की भारी आवाज़ आई- “ये तो होना ही था.” उन्होंने अपनी छड़ी घुमाते ऊपर की तरफ घुमाते हुए कहा, “वह सब देखता है. इतना घोर अन्याय, उफ़.” अचानक ढम ढम की आवाज़, किसीने इन्ही की गाड़ी पर डंडा पटक दिया था. ड्राईवर सतर्क था, उसने अपना स्टीयरिंग घुमाया और गाडी तेज गति से आगे बढ़ गयी. 
सुदूर आसमान में बदली धीरे-धीरे छंट रही थी, और बीच-बीच में चांदनी अपनी छटा बिखेर रही थी, जो सीधे ज़मीन को आलोकित कर रही थी. बड़ा ही खुशनुमा दृश्य था.  

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